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लाइफस्टाइल ने डाला पाइवेसी पर डाका

👤 | Updated on:14 July 2010 3:38 PM GMT
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शाहिद ए चौधरी सागर तनेजा अपनी पाइवेसी को लेकर इस कदर सजग हैं कि  अपनी पर्सनल और पोफेशनल लाइफ में उन्हें अपने घरवालों तक की दखलंदाजी पसंद नहीं फिर भला किसी बाहर के व्यक्ति की क्या बिसात कि वह उनकी निजता में ताकझांक करने की कोशिश करे? अपनी पाइवेसी को बरकरार रखने के लिए सागर अपने दोस्तों और मिलने-जुलने वालों से भी अपने घरेलू मसलों, माता-पिता के बारे में या कामकाज, कमाई आदि के बारे में कोई बातचीत करना पसंद नहीं करते हैं। लेकिन एक दिन जब सागर ऑफिस में अपने काम में मगन था तभी अचानक उसका फोन बजने लगा। अपनी एकाग्रता भंग होने पर सागर को काफी झल्लाहट हुई, उसने बड़ी बेरुखी से फोन उ"ाया। फोन उ"ाने पर दूसरी तरफ एक लकड़ी ने बड़ी मी"ाr आवाज में सागर का अभिवादन किया। थोड़ी देर बातचीत के बाद पता चला कि वह लड़की किसी मॉल से बोल रही है और पिछले दिनों सागर ने जो शॉपिंग की थी और भुगतान के लिए केडिट कार्ड स्वैप कराया था, उसमें कुछ परेशानी आ गई। लड़की ने सागर को ाढsडिट कार्ड से हुई गलती को सुधरने के एवज में उसके कुछ अकाउंट नंबर, पेशा और मौजूदा कंपनी जिसमें वह काम कर रहा है, इन सभी की जानकारियां मांगी। सागर ने बड़ी आसानी से यह तमाम जानकारियां उसे दे दीं। बातचीत की पकिया खत्म होने के बाद सागर को जैसे झटका सा लगा हो। अपनी जिस पाइवेसी को लेकर वह इतना सख्त है, वह कुछ सेकेंडों के अंदर ही एक अनजान लड़की और उसकी कंपनी के पास पहुंच गई। इसे रोकने के लिए सागर कुछ भी नहीं कर पाया। अब आप सोच रहें होंगे कि वह लड़की तो ाढsडिट कार्ड से जुड़ी सूचनाएं ही मांग रही थी, इससे पाइवेसी का क्या लेना-देना। ज्यादातर लोग पाइवेसी को एकांत और शांत माहौल से जोड़ते हैं लेकिन पाइवेसी का अर्थ सिर्फ अकेले रहना नहीं है बल्कि इससे हमारी तमाम पर्सनल और पोफेशनल जानकारियां जुड़ी हैं। हमसे जुड़ी किसी भी व्यक्तिगत जानकारी को यदि कोई बिना हमारी मर्जी के पाप्त कर लेता है या पाप्त करने की कोशिश करता है तो इसे हमारी पाइवेसी में खलल ही कहा जाएगा।   हमारे जीने के तौर-तरीकों में जिस तेजी से बदलाव आएं हैं उसमें सबसे ज्यादा नुकसान हमारी पाइवेसी का ही हुआ है। हमारे लिए हैरानी की बात यह है कि बेहद चालाकी और होशियारी से हमसे जुड़ी जानकारियों को एक झटके में हमसे ही झटक लिया जाता है और हम कुछ भी नहीं कर पाते। पाइवेसी पर डकैटी डालने का यह खेल जिस तेजी से बढ़ता जा रहा है, उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में आपसे जुड़ी हर जानकारी दुनिया के कोने-कोने में होगी और इसे अपने पास रखने वाले जैसे चाहे इसका उपयोग करेंगे। अब पश्न यह उ"ता है कि आखिर यह लोग हैं कौन जिन्हें हमारी और आपकी हर जानकारी की जरूरत है? इन्हें इससे क्या लाभ है? क्यों ये हमेशा इस कोशिश में लगे रहते हैं कि हमारे बारे में हर चीज जान लें? इन जानकारियों से इनका कौन सा उल्लू सीध होता है? इन सभी सवालों के जवाब के लिए हमें बाजारीकरण के कंसेप्ट को समझना होगा। यह तो हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि बाजार सिर्फ एक ही सिॆांत पर चलता है, मुनाफे के सिॆांत पर। बाजार को जिस चीज, तौर-तरीके और योजनाओं से फायदा होगा वह उसे ही अपनाएगा। अपने मुनाफे के लिए बाजार किसी भी सीमा को पार करने की हिमाकत कर सकता है। इन दिनों बाजार उपभोक्ताओं की पाइवेसी को चुराकर ऐसी ही हिमाकत कर रहा है। आप सभी के मस्तिष्क में यह विचार कौंध रहा होगा कि उपभोक्ता की पाइवेसी से बाजार को क्या और कैसा फायदा हो सकता है? तो हम आपको बता दें कि अगर बाजार इन दिनों भारी मुनाफा काट रहा है और लगातार विकसित होता जा रहा है तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ उपभोक्ताओं से जुड़ी जानकारियां ही मुख्य कारण हैं। बाजार का सारा तिकड़म उपभोक्ता के बारे में हर छोटी-छोटी चीज जानने में लगा हुआ है। इसी तिकड़म के आधार पर बाजार अपने उपभोक्ता की पसंद-नापसंद, जरूरत-गैर जरूरत को समझने की कोशिश करता है। इसी समझ के आधार पर वह यह तय करता है कि उसके ग्राहक को क्या और कैसे बेचना है कि वह बिना खरीदे रह ही न पाए। विकास और आधुनिकता के नाम पर हमारी सभी जरूरी सूचनाओं को अलग-अलग तरीके से एकत्रित करना है तो गैर-कानूनी लेकिन हम इसे इसलिए भी रोक नहीं पा रहे ंहैं क्योंकि अभी तक हम शायद यह जान ही नहीं पाए हैं कि तमाम सुविधओं और सहूलियतों के नाम पर हमारी निजता को मुनाफा कमाने का जरिया बना लिया गया है। इसे एक उदाहरण के साथ समझा जा सकता है। तकनीक के विकास द्वारा स्वैप मशीन और ाढsडिट कार्ड का पचार यह कहकर किया गया कि अब चाहे कितनी भी खरीदारी करनी हो जेब में एक पैसा रखने की जरूरत नहीं। लाखों रुपए की खरीदारी सिर्फ एक कार्ड से की जा सकती है। लोगों को लगा, वाकई यह तो कमाल की तकनीक है। इससे पैसे गिरने या जेब कटने का डर भी खत्म हो जाएगा। बस अपने बटुए में ाढsडिट कार्ड रखो और दुनिया के किसी भी हिस्से में बिना पैसों के ही कुछ भी खरीद लाओ। यह सब तो "ाrक थाऋ लेकिन हम इसके नाकारात्मक पक्ष को तो समझ ही नहीं पाए। स्वैप मशीन में जब ाढsडिट कार्ड स्वैप कराया जाता है तो पैसों के साथ हमारे एकाउंट, एकाउंट में बैलेंस, नाम, पता, पिता का नाम और रोजगार, हर चीज की जानकारी भी बाजार के कब्जे में आ जाती है। कार्ड स्वैप होने के बाद हम बड़ी खुशी-खुशी यह सोचकर कार्ड बटुए में रख लेते हैं कि  वाकई इस तकनीक ने जिंदगी को कितना आसान बना दिया है। लेकिन इसके साथ ही हम यह भूल जाते हैं कि इस माध्यम ने हमारी निजता के कवच को पूरी तरह तोड़ दिया है। दरअसल इस तरह की सभी जानकारियों को एकत्रित करके एक खाका तैयार किया जाता है, जिसमें यह बता लगता है कि किस वर्ग का उपभोक्ता किस चीज में सबसे ज्यादा पैसे डाल रहा है और किसमें नहीं। इसके अलावा इन जानकारियों से यह भी मालूम हो जाता है कि किसी शहर, राज्य या देश में कितने पतिशत उपभोक्ता बढ़ रहा है या घट रहा है। बाजार की सभी रणनीतियां इन्हीं जानकारियों को आधार बनाकर तैयार की जाती हैं। हममें से ज्यादातर लोग पाइवेसी के नाम पर अपनी जान-पहचान के लोगों यहां तक कि परिवार से भी दूरी बनाकर रखते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं ताकि लोग आपके बारे में कुछ भी न जान पाएं। लेकिन जब बाहरी दुनिया अलग-अलग जरियों से हमारी निजता में दखलंदाजी करती है तो हमें इसकी भनक भी नहीं लगने पाती या फिर हम जानकर भी अंजान बने रहते हैं। पाइवेसी का बैंड बजाने के लिए व्यापार और बाजार इस कदर हम पर हावी होता जा रहा है कि हम बिल्कुल असहाय होते जा रहे हैं। बाजार हमारी जानकारियों के आधार पर हमें अपने इशारों पर नचा रहा है और हम बिना किसी शिकवा-शिकायत के नाचे जा रहे हैं। बाजार से जुड़ी कोई भी छोटी या बड़ी फर्म अपने उपभोक्ता को टटोलने के लिए कई तरह के नुस्खे अपनाती रहती हैं। इन नुस्खों में उत्पादों पर तरह-तरह के ऑफर चलाना, इनामी योजनाएं बनाना जिससे उपभोक्ता बाजार की ओर आकर्षित हो, स्कीमें चलाकर दर्शकों को इन स्कीमों में खरीदारी पर छूट मिलने का लालच देना आदि। इन तमाम नुस्खों के पीछे पी बढ़ाने के साथ उपभोक्ता की निजता के दायरे में आने वाली सूचानाओं को कुरेद कर निकालना मुख्य मकसद होता है।  अक्सर ही आपके पास इस तरह के फोन आते होंगे कि आप फलां-फलां इनामी योजना के विजेता हैं। फिर आपसे कुछ जानकारियां मांगी जाती हैं इस ाढम में आपकी सभी पाइवेट बातों को एक-एक करके पूछा जाता है और आप बिना किसी परेशानी के खुशी के साथ उन्हें सारी जानकारी दे देते हैं। हमारे सारे शौक, मान्याताएं व रुचियां और आदतें कहीं न कहीं न कहीं हमारी निजता की ही निशानी हैं। अगर बाजार हमसे जुड़ी इन सभी बातों को जानने और समझने की कोशिश कर रहा है तो इसका सीधा सा एक ही अर्थ है कि वह हमारी निजता की सीमारेखा पार करने की कोशिश कर रहा है। अगर मैगी के विज्ञापन में दो मिनट में पेट भरने की सलाह दी जा रही है तो कहीं न कहीं उन्हें यह मालूम है कि अब लोगों के पास इतना समय नहीं कि वह रसोई में घंटों खाना बनाएं। हमारी इस बदली हुई परिस्थिति को जानने के लिए मैगी कंपनी के उत्पादकों ने काफी समय और पैसा खर्च किया होगा तब जाकर उन्हें व्यस्तता जैसे निजी मसले को भुनाने का उपाय सूझा होगा।   चारो ओर विकास की हवा चल रही है लेकिन इस हवा में हमारी पाइवेसी खत्म हो रही है। हम चाहकर भी इसे बचा नहीं पा रहे हैं। इंटरेनट के इस युग में हमें कई सुविधाएं मिल रही है लेकिन इन सुविधओं के एवज में हमें अपनी पाइवेसी की तिलांजलि देनी पड़ रही है। बाजार द्वारा उपभोक्ताओं की पाइवेसी पर डाका डालने का सबसे बड़ा हथियार इंटरनेट है। इंटरनेट के बढ़ते दायरे ने हमारी निजता का दायरा छोटा कर दिया है। पाइवेसी का बैंड बजाने में इंटरनेट का सबसे अहम रोल है। ई-शापिंग हो या ई-रिजर्वेशन, इनमें आपकी आर्थिक गतिविधि से जुड़ी हर जानकरी का ब्यौरा मांगा जाता है। इंटरनेट पर किसी का भी मेल आईडी पाप्त कर लेना तो दुनिया का सबसे आसान काम है। आपने अपना आईडी भले ही रिजर्व लोगों को दिया हो लेकिन बाजार के लुभावने विज्ञापनों वाले मेल बिना किसी टोकाटाकी के आपके इनबॉक्स में घुस जाते हैं और बेशर्मी के साथ इस बात की दलील देते हैं कि हमें  आपकी पाइवेसी से क्या लेना-देना, हम तो सिर्फ और सिर्फ अपना मुनाफा देखते हैं।  F़ंटरनेट पर आप भले ही कितना जरूरी काम कर रहे हों लेकिन विज्ञापनों को विंडो पर एक के बाद एक आने से रोकना लगभग नामुकिन है। निजी जीवन में बाजार की इस कदर दखलअंदाजी से शायद कभी-कभी आप झल्ला भी जाते हों लेकिन इन्होंने तो बेशर्मी का चोला ओढ़ रखा है।    

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