पाइवेसी का स्लो ज्वाइन है ग्लोबलाइजेशन
आज से कुछ दशकें पहले जब ग्लोबलाइजेशन के हमारे देश में पदार्पण किया था तो देश के जाने-माने विद्वानों ने इसके हर पहलू को जांचा परखा। जिसमें इसके वैश्विक पभाव, आर्थिक महत्व, घरेलू उद्योंगों का हश्र और अन्य नुकसानों का अंदाजा तो लगाया गया। लेकिन इन सभी के बीच किसी का भी ध्यान इस संकट की ओर गया ही नहीं। जिससे हम आज दो-चार हो रहे हैं। विशेषज्ञों की पूरी की पूरी टीम भी ग्लोबलाइजेशन के इस स्लो प्वाइजन को भांप नहीं पाई होगी। बाजार अपने फायदे के लिए इस तरह की नीतियां बना सकता है कि लोगों की निजता पर भी आंच आने लगे, उस समय तक तो इतने बड़े बदलाव की कल्पना तक नहीं की गई होगी। ग्लोबजाइजेशन के चलते वैश्विक व्यापारिक सोच ओर नजरिया विकसित हुआ और इसी के साथ पाइवेसी पर सेंध लगाने के तरीके भी विकसित होते चले गए। ग्लोबलाइजेशन ने बाजार के दायरों को इस कदर बढ़ा दिया कि उसकी कोई सीमा ही नहीं रही। ग्लोबजाइजेशन के चलते विदेशी व्यापारी दिमाग ने हमारी धरती पर कदम रखा। इन लोगों का हमसे कोई भावनात्मक लगाव तो था नहीं, यह यहां पर सिर्फ मुनाफा कमाने की लक्ष्य लेकर आए और इसे पूरा करने के लिए हर तरह के पयोगों को आजमाते रहे। धीरे-धीरे जब उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि हम भारतीय आसानी से उनके झांसे में आ जाते हैं तो उन्होंने हमारी पाइवेसी पर वार करने की योजना बनाई। इस योजना के तहत सबसे पहले ऐसे तरीके खोजे गए जिससे हमें यह मालूम भी न पड़े कि हमारी निजता में तांक-झांक की जा रही है और कंपनियों का लक्ष्य भी पूरा हो जाए। इसके लिए तकनीक और विकास की आड़ लेकर कई संयंत्रों और तरीकों को अपनाकर हमारी कमजोरी, ताकत और आदतों को जानने की कोशिश की गई। जब ग्लोबलाइज मार्केट को इन सभी की जानकारी हो गई तो इन तमाम बातों के आधार पर विज्ञापनों और अन्य माध्यमों के जरिए इस बात का भरोसा दिलाया गया कि फलां उत्पाद हमारी उस जरूरत को पूरा करता है जिसके बारे में हम हमेशा सोचते रहते हैं। ग्लोबलाइजेशन ने बाजार को यह अधिकार और ताकत दे दी कि वह हमारी सोच पर अधिकार कर सके। यही कारण है कि कोक और मैगी जैसे उत्पाद हमारी निजता में पवेश करके हमारी मानसिकता को समझकर हम पर हावी हो चुके हैं। ग्लोबलाइजेशन ने चोरी-चोरी हमारी पाइवेसी को अंन्तर्राष्ट्रीय बाजार का हिस्सा बना दिया और हम इसे अपनी तरक्की और विकास का दौर मानकर खुश होते रहे।