Home » रविवारीय » ईशनिंदा के आरोपी पर कातिलाना हमला सुनो! ये सुन्नते रसूल नहीं है

ईशनिंदा के आरोपी पर कातिलाना हमला सुनो! ये सुन्नते रसूल नहीं है

👤 | Updated on:14 July 2010 3:50 PM GMT
Share Post

  म दीना में जब पैगम्बर मुहम्मद एक गली से होकर गुजरते थे तो वहां रहने वाली एक वृॆ यहूदी महिला उनकी राह में कूड़ा करकट व अन्य खराब चीजें पेफंक दिया करती थी। वह ऐसा इसलिए करती थी क्योंकि वह मुहम्मद साहब को अल्लाह का आखिरी पैगम्बर नहीं मानती थी और उनके विचारों का विरोध करती थी। पैगम्बर मुहम्मद उस महिला से कुछ नहीं कहते थे और वह जो कूड़ा पेफंकती थी उसे गली में एक तरफ करके निकल जाया करते थे। एक दिन उनके सामने कूड़ा नहीं पेफंका गया। उन्होंने मालूम किया तो बताया गया कि महिला बहुत बीमार है और अपनी चारपाई से उ" भी नहीं सकती। यह सुनकर पैगम्बर मुहम्मद उस महिला के कुशलक्षेम को पहुंचे और उससे मिलकर अल्लाह से उसके लिए जल्द "ाrक होने की दुआ की। पैगम्बर मुहम्मद के इस व्यवहार को देखकर महिला अपने आपसे बहुत शर्मिंदा हुई और उसने फिर कभी पैगम्बर को परेशान करने की कोशिश नहीं की। इसमें शक नहीं है कि जो लोग ईशनिंदा या एक समुदाय विशेष की भावनाओं को भड़काने के लिए आपत्तिजनक व विवादास्पद कार्टून बनाते हैं, लेख व किताबें लिखते हैं या पश्नपत्र के सवालें में असभ्य भाषा का पयोग करते हैं, वे उसी वृॆ यहूदी महिला की तरह हैं जो पैगम्बर मुहम्मद पर कूड़ा पेफंका करती थी। लेकिन जो लोग हिंसा या गैर-कानूनी तरीकों से इन `भावनाओं को भड़काने' वालों का विरोध कर रहे हैं वे भी पैगम्बर मुहम्मद के अनुयायी होने का सबूत नहीं दे रहे हैं। सुन्नत पर चलने का तकाजा ये है कि इन लोगों को माफ या नजरअंदाज कर देना चाहिए जैसा कि पैगम्बर मुहम्मद करते थे। गौरतलब है कि सुन्नत का अर्थ है, अपने व्यवहार को पैगम्बर मुहम्मद के व्यवहार के अनुरूप कर लेना। इसलिए पोपेफसर टी.जे. जोसफ पर केरल के जिला एर्नाकुलम में जो तलवारों से कातिलाना हमला किया गया वह न केवल निंदनीय है बल्कि न्याय की मांग है कि हमलावरों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। ध्यान रहे कि इस संदर्भ में दो लोगों को गिरफ्रतार किया गया है और बारह अन्य को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। आगे बढ़ने से पहले आवश्यक मालूम होता है कि पूर घटपाम को एक बार संक्षेप में समझ लेना चाहिए। न्यू मैन कॉलेज, थोडूपोजा के 53 वर्षीय पोपेफसर टी.जे. जोसफ ने एक विवादित पश्नपत्र तैयार किया था जिसमें पैगम्बर मुहम्मद को लेकर आपत्तिजनक विशेषणों का पयोग किया गया था। इस पश्नपत्र का विरोध स्वभाविक था, इसलिए पुलिस ने पोपेफसर जोसफ के खिलाफ सांपधयिक वैमनस्य फैलाने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया। पोपेफसर जोसफ को कॉलेज ने एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया। कुछ दिन तक तो पोपेफसर जोसफ पुलिस की पहुंच से बाहर रहे लेकिन आखिरकार उन्हें आईपीसी की धारा 295 के तहत गिरफ्रतार कर लिया गया। कुछ दिन जेल में रहने के बाद वे जमानत पर बाहर आ गए। बीती 4 जुलाई को वे अपनी मां और बहन के साथ चर्च से वापस अपने घर आ रहे थे कि रास्ते में 6 अज्ञात लोगों ने उनकी कार को रोका और तलवार से उन पर हमला किया। इस हमले में पोपेफसर जोसफ के सीधे sहाथ की हथेली कट गई जिसे बाद में ऑपरेशन करके जोड़ दिया गया। वे अब खतरे से बाहर हैं। पुलिस का मानना है कि हमलावरों का सम्बंध पॉपुलर पफंट ऑफ इंडिया से है। लेकिन पफंट ने बंगलुरू स्थित अपने मुख्यालय से पेस विज्ञप्ति जारी करके अपने कार्यकर्ताओं का इस हमले में शामिल होने से इंकार किया है और कहा है कि यह उनके संग"न को बदनाम करने की साजिश है। पफंट के कार्यकर्ताओं ने एर्नाकुलम में भी पदर्शन करके कहा है कि वह पोपेफसर जोसफ पर हमले की निंदा करता है और उसके कार्यकर्ता इस हमले में शामिल नहीं हैं। बहरहाल, संभवतः यह पहला अवसर है जब ईशनिंदा के किसी आरोपी के विरुॆ हिंसा के पयोग का सभी मुस्लिम संग"नों ने विरोध किया है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ऑल मिल्ली काउंसिल, जमात-ए-इस्लामी हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, जमात-ए-उलमा-ए-हिंद आदि संग"नों ने पोपेफसर जोसफ पर हुए इस हमले की निंदा की है और हमलावरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। इन संग"नों का विचार है कि पोपेफसर जोसफ पर हमला इस्लामी सिॆांतों के विरुॆ है। जबकि इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज के चेयरमैन डॉ. मन्जूर आलम का कहना है कि ईशनिंदा से भावनाओं को "sस अवश्य लगती है, लेकिन कुरआन का तकाजा है कि कानून को अपने हाथ में न लिया जाए। इसलिए जिन लोगों ने पोपेफसर जोसफ पर हमला किया है उनके खिलाफ पुलिस पशासन को जल्द क"ाsर कार्रवाई करनी चाहिए और पूर क्षेत्र में सांपधयिक सौहार्द बनाए रखने का पयास किया जाना चाहिए। डॉ. आलम के अनुसार सुन्नत-ए-रसूल ये है कि आरोपी को पहले शालीन तरीके से समझाना चाहिए और अगर वह फिर भी न माने तो उसे माफ कर देना चाहिए जैसा कि मक्का के फतह होने के बाद पैगम्बर मुहम्मद ने अपने तमाम दुश्मनों को माफ कर दिया था। डॉ. आलम का यह भी कहना है कि कुरआन हमें सिस्टम में रहना सिखाता है और इसलिए सिस्टम से बाहर नहीं जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि कानून को अपना काम करने दीजिए और खुद कानून को अपने हाथ में न लें। एक और उल्लेखनीय बात जो इस घटपाम में सामने आयी वह यह है कि जमात-ए-इस्लामी हिंद के कार्यकर्ताओं ने पोपेफसर जोसफ के लिए रक्तदान किया और उनके जल्द स्वस्थ होने की दुआएं की। जमात-ए-इस्लामी हिंद का भी यही कहना है कि पोपेफसर जोसफ के खिलाफ कानून अपना काम कर रहा है, इसलिए किसी को ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिए जो देश के कानून के भी खिलाफ हो और इस्लाम के भी खिलाफ हो। बहरहाल, यह बहुत दुख की बात है कि डेनमार्क से लेकर एर्नाकुलम तक जब भी कोई व्यक्ति पैगम्बर मुहम्मद के खिलाफ कुछ लिखता है तो उस पर मुस्लिमों की पतिािढया जज्बाती व हिंसात्मक होती है। यह "ाrक नहीं है, साथ ही यह सुन्नत-ए-रसूल भी नहीं है। दरअसल बेकार की बातों पर कोई पतिािढया होनी ही नहीं चाहिए। किसी के कार्टून बना देने से या अपशब्द लिख देने से पैगम्बर मुहम्मद की आदरणीय शख्सियत पर कोई आंच नहीं आती, उनका मरतबा वही रहेगा जो कि है यानी अल्लाह के आखिरी नबी व रसूल का। अगर भड़काउफ बातों को मुस्लिम नजरअंदाज करना सीख लें तो भड़काउफ बातें होनी ही बंद हो जाएंगी। वैसे भी आसमान पर थूका अपने मुंह पर ही आता है। बकौल मजहर सियानवी- इल्जाम बहुत मुझपे लगाने में लगा है, सूरज पे कोई खाक उड़ाने में लगा है। शाहिद ए चौधरी ;लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्रलेक्शन सेंटर में विशिष्ट संपादक हैंद्ध  

Share it
Top