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टेलीविजन ने बदल दिया है हमारे सोचने-समझने का ढंग

👤 | Updated on:14 July 2010 3:50 PM GMT
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  टे लीविजन 21वीं सदी का सबसे ताकतवर मनोरंजन का साधन है। ध्वनि और चित्र की बदौलत इसने सोचने और समझने के ढंग को न सिर्फ बदला है बल्कि उसे नए मायने दिए हैं। हम अपने इर्द-गिर्द नजर दौड़ाएं तो देख सकते हैं कि टेलीविजन ने किस तरह के पभाव को जन्म दिया है। टेलीविजन का पभाव हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में हर तरफ दृष्टिगोचर होता है। छोटे पर्दे पर घटने वाली तमाम घटनाएं, गतिविधियां, हमारे समाज को अपने ढंग से पभावित करती हैं। नई पीढ़ी खासतौर पर बच्चे टेलीविजन की लत का शिकार हैं। वास्तव में टेलीविजन ने इन्हें ही सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से सबसे ज्यादा पभावित किया है। टेलीविजन के तमाम अपने फायदे और नुकसान हैं। चूंकि इसका समाज पर गहरा असर इसलिए है क्योंकि यह आम लोगों के लिए सूचनाओं का सबसे बड़ा स्रोत है। अपने शहर, समाज, देश की ही नहीं पूरी दुनिया की सूचनाएं हासिल करने के लिए टेलीविजन आम लोगों के लिए सबसे बड़ा जरिया है। सिर्फ सूचना ही नहीं मौसम, बाजार, उत्पादों की गुणवत्ता, ब्रांड, हैसियत इन सब चीजों के बारे में अगर कोई जागरुक बनाता है तो वह सिर्फ और सिर्फ टेलीविजन है। टेलीविजन ने मंडी में कारोबार करने वाले आढ़ती, समुद में मछली पकड़ने वाले मछुवारे, सरहद में तैनात सैनिकों आदि सबके लिए जरूरी सूचनाओं का जरिया है। यह सूचनाओं के साथ उत्पादों के विज्ञापनों को भी घर-घर तक पहुंचाता है और लोगों को उनका दीवाना बनाता है। यह मनोरंजन का जरिया है और शेयर बाजार के उतार चढ़ाव पर नजर रखने का बड़ा आधार। आज के लोग अपने पुरखों के मुकाबले ज्यादा पतिस्पर्ध हैं। हममें पुरखों के मुकाबलें सूचनाओं की बहुत ज्यादा भूख है। इसलिए टेलीविजन आज हमारी जिंदगी में अलग-अलग उम्र समूह के लोगों पर अलग-अलग असर दिखाता है। नई पीढ़ी के लिए टेलीविजन शैक्षिक टूल्स की तरह भी इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि समाजशास्त्राr इस बात को लेकर भी बहस-मुबाहिसे में गुत्थमगुत्था हैं कि टेलीविजन जितना सिखाता है, उससे ज्यादा बिगाड़ता है। टीवी पीन पर दिन-रात दिखने वाली हिंसा, गैर जरूरी उत्तेजक सेक्स दृश्य, नौजवानों को सिखाने से ज्यादा बिगाड़ते हैं। यह टेलीविजन का ही नतीजा है कि पूरी दुनिया में कम उम्र के अपराधी और यहां तक कि गैंगस्टर बढ़ रहे हैं। पूरी दुनिया में आतंकवाद से लेकर तस्करी जैसे अपराधों तक में सबसे ज्यादा नई पीढ़ी के लोग खासकर किशोर शामिल हैं। दुनियाभर के स्कूलों में खुलेआम जो हिंसक पटकथाएं लिखी जा रही हैं उनकी पेरणा भी टेलीविजन ही है। पुरुषों के पास आजकल समय कम है। पत्नी के लिए भी, बच्चों के लिए भी। इसलिए तलाक के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और कॅरिअर में भारी पतिस्पर्धा का माहौल है। क्योंकि नौकरी पाना न सिर्फ मुश्किल है बल्कि उसमें बने रहना और मुश्किल है। इसलिए लोग जितना संघर्ष नौकरी पाने के लिए करते हैं इससे ज्यादा संघर्ष उन्हें इसे बनाए रखने के लिए करना पड़ता है। लोगों को अपना स्टैंडर्ड बरकरार रखने के लिए, अपना धन और सफलता बरकरार रखने के लिए जरूरत से ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है। दुर्भाग्य से इसके नतीजे बहुत अच्छे नहीं हैं। मां-बाप के पास बच्चों के साथ गुजारने का समय नहीं है। परिवारों के पास आपस में उ"ने-बै"ने के लिए वजहों की तलाश करनी पड़ती है। हर कोई इस दौर में अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहा है। इसलिए भी टेलीविजन की तरफ लोगों का झुकवा बढ़ रहा है। विशेषतौर पर बच्चों के अकेलेपन को दूर करने का तो एक ही जरिया बचा है, वह है टेलीविजन। ऐसा नहीं है कि मां-बाप नहीं जानते कि टेलीविजन उनके बच्चों को क्या परोस रहा है। मां-बाप जानते हैं कि टेलीविजन उनके बच्चों को हिंसा, अनैतिकता, मारपीट, बेहूदा व्यवहार करने के ढंग और खलनायकों को नायकों के रूप में उभारने का काम कर रहा है। लेकिन वह मजबूर हैं। मौजूदा लाइफस्टाइल ने उन्हें लाचार कर दिया है। टेलीविजन की यह सबसे बड़ी जीत है। टेलीविजन इसलिए लोगों के दिलोदिमाग में अपने गहरे असर छोड़ने में सफल हुआ हैऋ क्योंकि और किसी के पास ऐसा वक्त ही नहीं है जिनके साथ बै"कर लोग अपना वक्त गुजार सकें। भले संचार विशेषज्ञ मार्शल मैकलूहन ने कभी कहा हो कि संस्कृति और संवेदनाएं बाहरी माध्यम से नहीं बदला करतींऋ लेकिन जिस तरह से आज लोगों की टेलीविजन पर निर्भरता बढ़ गई है उसको देखते हुए यह कहने में कतई गुरेज नहीं है कि आज देशों की संस्कृतियां उनका इतिहास और भूगोल नहीं तय करता बल्कि टेलीविजन गढ़ता है। टेलीविजन आपको अपडेट रखने का बेहतरीन साधन है। यह भी सही है कि आप इन सूचनाओं से अपने आपका बेहतरीन विकास भी कर सकते हैं, पर अगर ऐसा चाहें तब। ...और इंसान का मनोविज्ञान व समाजशास्त्र इस बात का गवाह है कि लोग अच्छी बातें कभी नहीं सीखते और बुरी बातें दौड़कर सीखते हैं। वक्त हमेशा सबसे बड़ा गुरु होता है। वक्त सिखाता भी है और वक्त एहसास भी दिलाता है कि हम गलत कहां हैं। वक्त आ गया है कि हम टेलीविजन की जरूरत और उसके पभाव को समझेंऋ क्योंकि अगर एकमात्र नहीं तो जिंदगी का सबसे बड़ा माध्यम तो टेलीविजन बन ही गया है। वह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। टेलीविजन का आविष्कार तकनीकी नजरिये से विकास के कई चरणों को पार करके आज जहां पहुंचा है, वहां वह पहले के मुकाबले ज्यादा जीवंत है, ज्यादा पभावी है और दिन पर दिन और ज्यादा जीवंत हो रहा है। मतलब दिन पर दिन और ज्यादा पभावी होता जाएगा। पहले टीवी श्याम-श्वेत था, फिर रंगीन हुआ। इसके बाद पाकृतिक रंग का और अब तो एलसीडी और प्लाज्मा टेक्नोलॉजी इसे और ज्यादा जीवंत बना दिया है। इसी वजह से यह जीवंत मीडिया का सबसे बड़ा जरिया है। इसलिए यह हमारी संस्कृति को पभावित कर रहा है, हमारी जीवनशैली पर असर डाल रहा है और हमें चौंका रहा है। निनाद गौतम  

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