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अकेले रहने वाले स्त्राr-पुरुषों को भी अब मिलेगा संतान सुख

👤 | Updated on:14 July 2010 4:12 PM GMT
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  आाधुनिकता की होड़ में अकेले ही पूरा जीवन बिता देने का चलन जोरों पर है। महिलाएं व पुरुष आजकल अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आजीवन अविवाहित रहने लगे हैं। बिना किसी बंधन के आजाद पंछी की भांति खुले आसमान में उड़ने की चाहत ही युवाओं को सिंगल रहने के लिए पेरित कर रहा है। इस चाहत को पूरा करने वालों का पतिशत दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। अकेले रहने वाली महिलाएं और पुरुष यदि मातृ या पितृ भाव से जरा भी जुड़ाव रखते हैं तो अब तक वह सिर्पफ दूसरों के बच्चों को देखकर या उनके साथ कुछ समय बिताकर ही संतोष कर लिया करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। भारत सरकार के इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च विभाग को एक ऐसा बिल तैयार करने के लिए कहा गया है जिससे अब अकेले रहने वाले पुरुष व महिलाओं को संतान सुख से वंचित नहीं रहना पड़ेगा। इस बिल से लिव इन रिलेशनशिप में विश्वास रखने वाले लोगों को भी बिना विवाह किये ही संतान सुख हासिल करने का अधिकार मिल जाएगा। इस कानून में सैरोगेसी को भी सामाजिक स्वीकारिता का अधिकार मिलेगा। असिस्टेड रिपोडक्टिव टेक्नोलॉजी बिल, 2010 नाम के इस बिल में रिपोडक्टिव टेक्नोलॉजी का पा किया गया है। इस बिल में उन सभी तकनीक को कानूनी मान्यता दी गई है जिसमें स्पर्म या अंडाणु को मानव शरीर के बाहर निषेचित कराकर इसे महिला की कोख में पवेश कराया जाता है। इस संबंध में कार्मिक, जन शिकायत, कानून एवं न्याय से सम्बंधित सांसदीय समिति की अध्यक्ष जयंती नटराजन ने भी कहा है कि विधेयक के जरिये हिंदू भरण-पोषण अधिनियम और हिंदू अभिभावक एवं संरक्षक अधिनियम में संशोधन किया जाएगा। इस विधेयक के बाद अकेली रह रही महिलाएं एवं विधवा महिलाएं भी बच्चा गोद ले सकेंगी। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च विभाग ने इस बिल को पारंभिक तौर पर ड्राफ्रट करके हेल्थ मिनिस्ट्री के पास भेज दिया है। हेल्थ मिनिस्ट्री से हरी झंडी मिलने के बाद ही यह बिल संसद में पेश होने के लिए जायेगा। हेल्थ मिनिस्ट्री के पास भेजे जाने से पहले इस बिल को कानून मंत्रालय द्वारा जांचा जा चुका है। कानून मंत्रालय ने बिल में कुछ संशोधन भी किये हैं। बिल की ड्राफ्रिटंग कमेटी के सदस्य व वैज्ञानिक डॉ. पीएम भार्गव का कहना है कि यह बिल सभी पकार के मसलों के लिए बेहद खुला हुआ साबित होगा। कमेटी ने इस बिल में कई रूल्स और रेगुलेशन भी डाले हुए हैं जिससे इसके पास होने पर यह फौरन अपना पभाव दिखाए। यह बिल शादीशुदा व गैर शादीशुदा दोनों ही पकार के लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इस बिल के पास होने से उन बच्चों को कानूनी रूप से जायज "हराया जाएगा जो गैर शादीशुदा मां की कोख से जन्में हैं। सामाजिक व कानूनी रूप से इन बच्चों को अभी भी संपत्ति का अधिकार नहीं मिल पाता है। इस बिल के पेश होने से ऐसे बच्चों को मां के नाम से जाना जायेगा। इसके अलावा अविवाहित पुरुष भी यदि अपना बच्चा चाहते हैं तो वह भी सैरोगेट मदर की सहायता से संतान सुख पाप्त कर सकते हैं। अविवाहित पुरुषों के बच्चों को सिर्पफ पुरुष के ही नाम से जाना जायेगा। बच्चे की मां के बारे में कोई भी पश्न नहीं किया जायेगा। सैरोगेसी के जरिये जन्म लेने वाले बच्चों का जन्म पमाण पत्र किसी एक या तो महिला या सिर्पफ पुरुष के नाम से बनेगा। इसमें माता-पिता दोनों का नाम नहीं होगा। इस बिल के पास हो जाने पर होमोसेक्सुअल कपल भी संतान सुख पा सकेंगे। असिस्टेड रिपोडक्टिव टेक्नोलॉजी के जरिये ऐसे लोग भी अपनी संतान का पालन-पोषण करने में सक्षम होंगे। भारत में एक ही लिंग के लोगों के साथ रहकर वैवाहिक जीवन का सुख लेना गलत माना जाता है। ऐसे में इस पकार के लोगों को बिल में जगह देने के नाम पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अगर हम होमोसेक्सुअल लोगों को साथ रहने से रोक नहीं सकते तो उन्हें संतान सुख से वंचित रखने का भी हमें कोई अधिकार नहीं है। बिल में हमने इन लोगों के लिए भी कानून बनाया है। इस कानून को मंजूरी देनी है या नहीं यह तो सरकार ही तय करेगी। हमें जो सही लगा हमने उसे इस बिल के रूप में तैयार कर दिया है बाकी का काम सरकार को करना है। दूसरे देशों के समलैंगिक जोड़े भारत में आकर सैरोगेट मदर की सहायता से संतान सुख पाप्त कर रहे हैं तो हमारे देश में रह रहे इस तरह के लोगों को बच्चे को सैरोगेट मदर की सहायता से पाप्त करने का अधिकार क्यों नहीं दिया जा सकता। बिल में यह कहा गया है कि भारत में जोड़ा ऐसे दो लोगों को कहा जाता है जो साथ रह रहे हों और जिनमें आपस में शारीरिक सम्बंध हों। इसके अनुसार आपसी सहमति से साथ रह रहे अविवाहित जोड़े भी कानूनी रूप से कोई गलत काम नहीं कर रहे। इस बिल में यह भी कहा गया है कि सैरोगेट मदर के जरिये संतान सुख की इच्छा रखने वाले जोड़ों को बच्चे के जन्म के बाद उसके असामान्य होने पर भी उसे स्वीकार करना होगा। इस कानून में सैरोगेट मदर की भूमिका निभाने वाली महिला की उम्र 21 से 35 वर्ष के बीच निर्धारित की गई है। इससे कम या ज्यादा उम्र की महिला सैरोगेट मदर की भूमिका नहीं निभा सकती। इसमें यह भी निर्देश दिया गया है कि सैरोगेट मदर के रूप में बच्चे को जन्म देने वाली महिला इस उम्र के बीच अपने बच्चों को मिलाकर अधिकतम पांच बार ही गर्भ धारण कर सकती है। सैरोगेट मदर को बच्चे को जन्म देने की पािढया में यदि कोई मेडिकल परेशानी आती है तो उसकी जिम्मेदारी उन जोड़ों पर होगी जिनके लिए सैरोगेट मदर बच्चे को जन्म दे रही है। इस बिल के पास हो जाने से भारतीय परिवेश में कई किस्म के बदलाव आएंगे। समलैंगिक व लिव इन रिलेशनशिप को पूरी तरह से जायज माना जाने लगेगा और गैर शादीशुदा होकर भी अपने बच्चे को जन्म देना व उसे सामाजिक मान्यता दिलाना आसान हो जायेगा। हमारा देश भी पश्चिमी संस्कृति की भांति एकला चलो के सिॆांत पर आगे बढ़ रहा है। इसे हमारी विकसित होती सोच का परिणाम कहेंगे या फिर आधुनिकता के नाम पर देश को पथ भ्रमित करने की पहल मानेंगे। इसमें लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है। लेकिन इस बिल के पेश होने से उन लोगों को राहत जरूर मिलेगी जो सामाजिक मान्यताओं के डर से अकेले रहने का साहस तो कर लेते हैं लेकिन संतान की इच्छा होने पर भी इससे आजीवन वंचित रहते हैं। वीना सुखीजा    

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