ठीक कहा डॉ. गुलशन गर्ग ने
संकल्प चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख एवं हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. मेजर गुलशन गर्ग ने बिल्कुल ठीक कहा है कि झोलाछाप डाक्टरों के नाम पर आरएमपी डाक्टरों को प्रैक्टिस से रोकना सरासर अन्याय है और यह संभव भी नहीं है। बिल्कुल सही है उनका यह मानना कि आरएमपी डॉ. उन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं जहां एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद कोई वहां जाना भी पसंद नहीं करता। वैसे भी आजकल डाक्टर सिर्प कंसलटेशन के नाम पर ही पांच से हजार रुपये तक मरीजों से झाड़ लेते हैं। इतनी बड़ी रकम एक आम आदमी के लिए देना संभव नहीं है। इस फीस के अलावा वे महंगे टैस्ट भी मरीज को बता देते हैं। यह भी एक कटु सत्य है कि बहुत से डाक्टर टैस्ट भी एक विशेष लैब से करवाने को कहते हैं क्योंकि लोगों के मतानुसार उन्हें वहां से भी कमीशन मिलता है। यानी डाक्टरी पेशा अब सेवा न रहकर शुद्ध रूप से कमाई का एक साधन बन चुका है। आरएमपी डाक्टरों को प्रैक्टिस करने का प्रमाणपत्र सरकार ही देती है और वह भी एक अवधि विशेष तक अनुभव प्राप्त कर लेने के बाद। अनेक आरएमपी डाक्टर ऐसे देख sगए हैं कि वे मरीजों को सस्ता अच्छा उपचार उपलब्ध कराते हैं। उनके पड़ोस में बैठा एमबीबीएस डाक्टर मक्खियां मार रहा होता है। अब एक और मामला उछल गया है कि आयुर्वेदिक डाक्टरों की भी छानबीन होगी। पहले तो सरकार सिवाय एमबीबीएस के किसी को डाक्टर ही मानने को तैयार नहीं। यह सरासर गलत है। समय के साथ-साथ अनेक ऐसी पद्धतियां विकसित हो चुकी हैं जिनको नकारना संभव नहीं है। आजकल वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में प्राकृतिक चिकित्सा, एक्यूप्रैशर एक्यूपंक्चर, रेकी सिद्ध साइंए; सिद्ध शक्ति; प्राणिक विपशयना, योग, आदि अनेक विधाएं ऐसी आ चुकी हैं जिनके द्वारा बिना दवाओं के अनेक रोगों को ठीक किया जा सकता है और लोग कर भी रहे हैं। इनमें किसी प्रकार का कोई जोखिम भी नहीं होता। ऐसे लोगों को डाक्टर लिखने की अनुमति दी जानी चाहिए भले ही उन्हें यह भी लिखना पड़े डाक्टर के साथ ही साथ वैकल्पिक चिकित्सा के डाक्टर। इससे जहां सरकार पर डाक्टरों को ऐसे क्षेत्रों में भेजने का बोझ घटेगा वहीं समाज में लोगों को छोटे-मोटे रोगों के लिए अस्पतालों की ओर नहीं भागना पड़ेगा। डॉ. गर्ग का यह सुझाव सर्वथा स्वागत योग्य है कि जिन डाक्टरों को सरकार झोलाछाप मानती है। उनके लिए विशेष प्रशिक्षण का प्रबंध किया जाए ताकि वे अपनी योग्यता से समाज को अपनी सेवाएं देते रहें। समस्या को उलझाने की बजाय सुलझाने की ओर ज्यादा तवज्जों दी जानी चाहिए। -इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली।