क्या दंतेवाड़ा व नारायणपुर की घटनाएं छोटी हैं
जब राजग का शासन था, तब पोटा के कानून के अंतर्गत सैकड़ों संदेहास्पद आतंकवादियों को जेलों में डाल दिया गया था। परिणामस्वरूप आतंकवाद की घटनाएं कश्मीर से बाहर बहुत कम हुई थीं परन्तु संप्रग की सरकार बनने के साथ ही पोटा के अंतर्गत पकड़े गए सभी संदेहास्पद लोगों को छोड़ दिया गया। इसके बाद बंगलौर, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, बनारस, आदि बहुत सारे शहरों में आतंकवादियों ने हजारों लोगों को मार डाला। भाजपा सरकार से आतंकवाद रोकने के लिए कठोर कानून की मांग की परन्तु सरकार ने वोटों की राजनीति के चलते ध्यान नहीं दिया। गुजरात, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान की सरकारों ने अपने राज्यों में आतंकवाद रोकने के लिए कठोर कानून बनाए तो केंद्र सरकार ने उन कानूनों को मान्य नहीं किया। अन्त में सरकार ने कानूनों में परिवर्तन तो किया पर इसके लिए मुंबई के विश्व प्रसिद्ध होटलों में आग लगाने की तथा 160 निर्दोष लोगों की हत्याओं की प्रतीक्षा की गई। अब भाजपा दंतेवाड़ा तथा नारायणपुर की घटनाओं के संदर्भ में नक्सलवादियों के सामने सेना तथा वायुसेना के उपयोग की मांग कर रही है, क्योंकि मुंबई की घटनाओं में आतंकवादियों ने निशस्त्र नागरिकों की हत्याएं की थीं जबकि दंतेवाड़ा तथा नारायणपुर में भारत सरकार के सशस्त्र संरक्षण बलों पर आक्रमण करके सरकार को सीधी चुनौती दी है। अत सरकार को तुरन्त सेना और वायुसेना का उपयोग करना चाहिए पर सरकार तमाशा देख रही है। केंद्र सरकार को नक्सलवादियों के विरुद्ध सेना का उपयोग अवश्य करना पड़ेगा पर कुछ और बड़ी घटनाएं घटने के बाद करेगी, क्योंकि सरकार की दृष्टि में दंतेवाड़ा और नारायणपुर की घटनाएं छोटी सूचनाएं हैं। -डॉ. शशि गर्ग, फरीदाबाद, हरियाणा।