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आरक्षण की मांग बेमानी

👤 | Updated on:28 Sep 2010 12:33 AM GMT
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ऐसे समाचार नित्य प्रतिदिन आते  रहते हैं और उन सब में अधिकांश मुस्लिम वर्ग के अपराधी ही पाए जाते हैं तभी तो आज हमारे देश की विभिन्न जेलों में लगभग 80 प्रतिशत मुस्लिम अपराधी मिलेंगे। आपको अगर विश्वास न हो तो पिछले 30-40 वर्षों का सरकारी लेखाजोखा देखा जा सकता है। आज `जेहाद' से त्रस्त भारत में इस्लामिक शक्तियों विभिन्न राष्ट्रद्रोही घटनाओं को अंजाम देने में लगी हुई हैं। इसके कारण भी इस्लामिक आतंकवादियों व अपराधियों ने भारतीय जेलों को अपना घर बना रखा है। हमारा देश भी इतना महान है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के उपरांत भी फांसी की सजा पाए अपराधियों को भी जेलों में सरकारी मेहमान बनाकर रखने का आदी हो चुका है। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या इस्लामिक शिक्षाओं के कारण जिहादी बनने वाले मुसलमान विभिन्न आपराधिक मामलों में क्यों लिप्त पाए जाते हैं। क्या उन्हें इस देश से प्यार नहीं, क्या इसके नागरिकों (गैर मुसलमानों) को विभिन्न प्रकार से लूटना, सताना, स्मैकिया बनाना, आदि ही उनका लक्ष्य है। क्या इस्लाम केवल और केवल लूटो, भगाओ, मारो, आदि के आधार पर विश्व में दारुल-इस्लाम स्थापित कर पाएगा? ऐसा प्रतीत होता है कि आज अल्पसंख्यक मुसलमान पूर्णत किसी न किसी रोजगार में लिप्त हैं चाहे वह कारीगरी, फल-सब्जी, ठेकेदारी, कबाड़ीगिरी पर फिर स्मगलिंग, नकली नोट, नशीले पदार्थ, अवैध हथियार का कारोबार हो या फिर चोरी-डकैती, लूट-मार, अपहरण, लविंग जेहाद, बमों से विस्फोट, आदि के अतिरिक्त अनेक सफेद पोश सज्जन भी विभिन्न सरकारी योजनाओं द्वारा लाभान्वित हो रहे हैं। ऐसे में इस वर्ग के लिए आरक्षण की मांग करना बेमानी है। -विनोद कुमार सर्वोदय,नयागंज, गाजियाबाद।    

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