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अयोध्या मामले में फैसला

👤 | Updated on:12 Oct 2010 12:12 AM GMT
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अयोध्या मामले पर आपका संपादकीय एक अक्तूबर 10 के अंक में पढ़ा, बहुत अच्छा लगा। आखिर एक लम्बा विवादास्पद मामला अपने अन्त की ओर 60 साल बाद ही सही अग्रसर तो हुआ। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद हिन्दू-मुस्लिम समुदाय में इन दोनों ही संप्रदायों के अगुआओं ने नफरत के बीज बो दिए थे। छह दिसम्बर 1992 की स्थिति को देखते हुए 30 सितम्बर को आने वाले फैसले को दृष्टिगत रखते हुए सारे देश की व सरकार की सांसें रुकी पड़ी थीं। एक अनजान-सा डर तथा दहशत का माहौल सारे देश में छाया हुआ था। पता नहीं क्या होगा?, की स्थिति से सारा देश सहमा हुआ था। लेकिन भारत की जनता ने बता दिया कि नहीं भारत अब वह भारत नहीं रहा। क्या हिन्दू और क्या मुसलमान सभी ने जिस सदाशयता का परिचय दिया तथा जिस प्रकार इस देश में अमन-चैन का माहौल बनाकर रखा, वह आज दुनिया के सामने एक मिसाल बन गया है। हालांकि अखबारों में प्रकाशित खबरों के अनुसार पाकिस्तान जैसा देश सिर्प इस मौके की ताड़ में था कि यहां दंगे हों और वह अपनी रोटियां सेंकनी शुरू करें। लेकिन भारत की बुद्धिमान जनता ने उसे यह मौका ही नहीं दिया। भारत की नई पीढ़ी ने यह भी साफ कर दिया कि उसे देश का सम्मान तथा इज्जत प्यारी है। देश के बाद ही मंदिर-मस्जिद का मुद्दा आता है। दूसरी तरफ माननीय उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले से साफ कर दिया है कि भारत की न्यायपालिका वास्तव में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष है। उसने जिस तरह से विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश देकर सभी पक्षों को संतुष्ट करने का साहसिक प्रयास किया है, वह सराहनीय है। हालांकि कुछ पक्ष सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कह रहे हैं और उनके जाने में किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र में सभी को अपने हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने का पूरा हक है। लेकिन जो फैसला आया है, उससे अच्छा फैसला हो नहीं सकता। मैं, हिन्दू-मुसलमान, दोनों ही संप्रदायों को इस बात के लिए पाठकों की ओर से बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने जिस तरह से अमन और शांति बनाए रखी है, वह हमारे जीवन में अद्वितीय घटना है और हमें भविष्य में भी ऐसा ही आचरण करने का संकल्प लेना चाहिए। सच पूछो तो एक फिल्मी गीत गाने को जी चाहता है जो इस प्रकार हैöआज किसी की हर हुई है न किसी की जीत, हो... हो... ...गाओ खुशी के गीत, हो हो गाओ खुशी के गीत। सभी जीते हैं। ऐसा फैसला कभी-कभार ही आता है। इस अनुपम फैसले के लिए न्यायपालिका को भी बधाई। -इन्द्र सिंह धिगान,किंग्जवे कैम्प, दिल्ली।        

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