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भाजपा के अमित शाह

👤 | Updated on:5 May 2015 12:08 AM GMT
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   भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह न तो कभी संघ के प्रिय रहे न ही भाजपा के कार्यकर्ताओं की पसंद के। मोदी जी का सान्निध्य से वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आज विराजमान है। लोकसभा चुनाव के पहले वह कहते थे दूसरी पार्टी के अच्छे नेता पार्टी में शामिल हों। लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत से बाहरी नेता पार्टी में शामिल हुए और रातोंरात टिकट भी पा गए। वह यह भी कहते थे यूपी में अच्छे नेताओं का अभाव था इसलिए बाहरी नेताओं को चुनाव लड़ाया गया और उत्तर प्रदेश में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली जबकि सच यह है कि अमित शाह जी, जीत का प्रमुख मोदी की प्रतिष्ठा और 85 फीसदी हिन्दुओं का कांग्रेस मुलायम ममता उमर जैसे लोगों से बेहद खुंदक रखना प्रमुख था। यदि लोकसभा चुनाव में बाहरी नेताओं को टिकट न  देकर भाजपा के कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाता तो शाह जी आज आपकी पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच पोजीशन कुछ और होती। रही-सही कसर शाह जी आपने दिल्ली में किरन बेदी को मुख्यमंत्री की घोषणा करके चरखारी में एक ऐसे प्रत्याशी को टिकट देकर जिसके पिता बेपेंदी लोटे की तरह कभी इधर कभी उधर घूमते रहते हैं। शाह जी लोगों का तो यहां तक कहना है कि आपका घमंड रावण जैसा है जो टूट रहा है पीडीपी से समझौता करके आपने मोदी की इज्जत का अच्छा खासा फालूदा बना दिया। मुख्यमंत्री बनकर गुजरात जाइए। इसी में पार्टी मोदी की भलाई है। -आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ। केंद्र व राज्य सरकार में आत्महत्या का मामला आम आदमी पार्टी की सरकार के द्वारा जंतर-मंतर पर धरने के दौरान एक किसान के द्वारा आत्महत्या का मामला राज्य और केंद्र सरकार के बीच फांस बनकर रह गया है। संसद में इसकी गूंज सुनाई देने के पश्चात दिल्ली पुलिस द्वारा मुकदमा पंजीकृत कर दिल्ली सरकार के आला नेताओं को जांच के लिए बुलाने पर कानून के लम्बे हाथों से गुजरकर संबंधित परिवार को न्याय की आशा कम नजर आती है। दिल्ली सरकार को राज्य का दर्ज तो हासिल है परन्तु पुलिस विभाग उसके अधीन नहीं है। जब इस विषय के जांच के आदेश दिल्ली सरकार ने दिए तो दिल्ली पुलिस ने कानून की विभिन्न धाराओं को लिखकर दिल्ली सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। अब यह एक किसान की आत्महत्या का मामला केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मांगने के पश्चात दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस का उसके अधीन न होना यहां पर एक किसान को न्याय मिलने पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। स्वयं दिल्ली पुलिस ने अपनी शिकायत दर्ज कराकर अपनी शिकायत पंजीकृत करवाई है। कोई भी संगठन धरना-प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र है परन्तु किसी व्यक्ति की उस धरने प्रदर्शन के दारन जान चली जाए तो इससे पल्लू झाड़ना कहां का इंसाफ है। जब गजेंद्र पेड़ पर चढ़कर भाषणबाजी को सुन रहा था तो उस समय स्टेज पर विराजमान नेता (जिस तरह से राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है) तालियां बजा रहे थे। इसका तात्पर्य सभी नेतागण गजेंद्र को उठाए गए कदम प्रथम चरण से अंतिम चरण तक सभी दृश्यों को देख रहे थे तो ऐसे समय में रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया गया इसलिए यह घटना केवल केंद्र और राज्य सरकार के बीच आपसी विवाद न बन जाए और गजेंद्र के परिवार को इंसाफ की किरण कहां से नजर आए। -शरद चन्द झा, रामजस कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी। नाइट शिफ्ट करने से बूढ़ा हो जाता है दिमाग वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि बेवक्त काम करने से दिमाग समय से पहले बूढ़ा हो सकता है और इससे याददाश्त भी प्रभावित हो सकती है। ऑक्यूपेशनल एंड एनवायरमेंटल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक एक दशक तक शिफ्ट ड्यूटी में काम करने से दिमाग उम्र से छह साल ज्यादा बूढ़ा हो जाता है। शिफ्ट में काम करना बंद करने के बाद इसमें कुछ सुधार होता है लेकिन सामान्य स्थिति में लौटने में पांच साल का समय लगता है। विशेषज्ञों का कहना है कि डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी के लिहाज से इस अध्ययन के निष्कर्ष अहम हो सकते हैं क्योंकि इसके अधिकांश मरीज नींद में गड़बड़ी की शिकायत करते हैं। हमारे शरीर की आंतरिक रचना इस तरह बनी है कि यह दिन में सक्रिय रहता है जबकि रात के समय इसे आराम चाहिए। नाइट शिफ्ट में काम करने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि बेवक्त काम करने से शरीर पर कुप्रभाव पड़ता है और स्तन कैंसर से लेकर मोटापा तक इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। स्वानसी विश्वविद्यालय और टुलूज विश्विद्यालय की एक टीम ने साबित किया है कि बेवक्त काम करने से दिमाग पर भी असर पड़ता है। इसमें तीन हजार लोगों पर याददाश्त, विचारों की तेजी और सामान्य ज्ञान क्षमता के परीक्षण किए गए। -प्रभाकर गौतम, कंझावला, दिल्ली। कौरवों का जन्म एक रहस्य कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद।      

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